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‘लाभार्थी आवास योजना’ पोस्टर में बीजेपी ने लगाई बिजनेस मैन सरू ब्रियरली के परिवार की फोटो – Fact Check

बुधवार को प्रधानमंत्री ने ‘यथास्थान झुग्गी-झोपड़ी पुनर्वास परियोजना’ के तहत दिल्ली के कालकाजी में 3024 नवनिर्मित फ्लैटों का उद्घाटन  किया। और कमजोर आय वर्ग के लोगों को घरों की चाबी दी.कार्यक्रम के पहले गृहमंत्री अमित शाह और कई अन्य बीजेपी नेताओं ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से कार्यक्रम के बारे में ट्वीट किया. ट्वीट में एक पोस्टर साझा किया जिसमें एक परिवार की फोटो लगाई गई उसका फ्लैट पाने वाले लाभार्थियों से कोई संबंध नहीं है. इंडिया चेक ने पाया कि ये तस्वीर सरू ब्रियरली की है जो बिजनेस मैन हैं. आर्काइव

अमित शाह ने बाद में अपना ट्वीट डिलीट कर दिया. दिल्ली बीजेपी ने भी अपने ट्विटर हैंडल से इस तस्वीर को साझा किया. कैप्शन में लिखा “दिल्ली के भूमिहीन कैंप में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले हजारों गरीबों को मिल रहा पक्के घर का उपहार।आज प्रधानमंत्री श्री @narendramodi 3024 EWS फ्लैट्स की चाबी लाभार्थियों को देकर करेंगे उनका सपना साकार।” आर्काइव

इस पोस्टर में सबसे ऊपर पीएम मोदी की तस्वीर है उसके दायीं ओर कार्यक्रम के आयोजन की जानकारी दी गई है। पीएम मोदी की फोटो के ठीक नीचे एक बड़ी सी बिल्डिंग और उसके नीचे लाभार्थियों की तस्वीर लगी है। यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि बीजेपी दिल्ली ने पोस्टर पर  लाभार्थियों की जिस तस्वीर का इस्तेमाल किया है वह हाल-फिलहाल की न होकर काफी पुरानी है। यह तस्वीर मध्य प्रदेश के गणेश तलाई, खंडवा जिले में जन्मे सरू ब्रियरली के परिवार की है।

फेसबुक पर भी कुछ वेरिफाइड अकाउंट्स से इस पोस्टर को साझा किया गया। इसे यहां और यहां देख सकते हैं।

सच क्या है ?

तस्वीर कब की है और किसकी है ? यह जानने के लिए हमने पोस्टर में लगी लाभान्वित परिवार की तस्वीर निकाल कर उसका रिवर्स इमेज सर्च किया तो हमे गूगल लेंस में कई लिंक मिले जहा ये फोटो नजर आई. 

एक विदेशी वेबसाइट celebs.bio पर हमें पता चला कि पोस्टर में ब्लू टीशर्ट पहने दिख रहे जिस शख्स के कंधे पर एक महिला ने हाथ रखा हुआ है उसका नाम ‘सरू ब्रियरली’ है और वह महिला फातिमा उसकी मां है। पोस्टर में दिख रही यह तस्वीर सरू ब्रियरली के परिवार की है। सरू का जन्म मध्यप्रदेश के गणेश तलाई, खंडवा जिला में हुआ था। उनके परिवार की हालत बेहद नाज़ुक थी जिसके कारण उन्हें भीख भी मांगनी पड़ी। सरू बचपन में ही अपने परिवार से दूर हो गए थे उन्हें एक ऑस्ट्रेलियाई जोड़े जॉन ब्रियरली और सू ब्रियरली ने गोद ले लिया था और उसे अपने साथ ऑस्ट्रेलिया ले गए थे। सरू आस्ट्रेलिया में ब्रियरली परिवार के व्यवसाय में सहयोग करते रहे लेकिन इस बीच उन्हें अपने परिवार की याद भी आती रही। गूगल अर्थ की मदद से सरू साल 2011 में बुरहानपुर स्टेशन को खोजने में सफल हुए यह स्टेशन उनके बचपन की यादों में शामिल था। 25 वर्ष बाद साल 2012 में सुरू अपने गृहनगर खंडवा को खोजने में सफल हुए वह अपने घर पहुंचे तो उनकी मां (फातिमा) ने उनको पहचान लिया। 31 अगस्त 2013 में हिंदुस्तान टाइम्स में भी सरू ब्रियरली पर एक आर्टिकल प्रकाशित हुआ जिसमें कई तस्वीरों के साथ बीजेपी के पोस्टर पर छपी तस्वीर भी मिली. रिपोर्ट आप यहां देख सकते हैं. नीचे अखबार की वेबसाइट में प्रकाशित तस्वीर का स्क्रीन शॉट हैं.

यह एक ऐसी घटना थी जिसे राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय दोनों तरह की खूब कवरेज मिली। सरू ब्रियरली ने अपनी जीवन यात्रा पर “ए लॉन्ग वे होम” पुस्तक भी लिखी. 2013 में ये किताब प्रकाशित हुई.

Saroo Brierley’s A Long Way Home

सरू के जीवन के घटनाक्रम पर आधारित 2016 में, एक मूवी ‘LION’ का निर्देशन किया गया, जिसे गर्थ डेविस ने निर्देशित किया था। देव पटेल ने सरू की भूमिका निभाई, निकोल किडमैन ने उनकी दत्तक मां की भूमिका निभाई, और रूनी मारा ने लिसा विलियम्स (लुसी, सरू की प्रेमिका) की भूमिका निभाई। फिल्म को काफी सराहा गया. और ये ऑस्कर के लिए भी नॉमिनेट हुई. सरू की आत्मकथा को पेंग्विन ने प्रकाशित किया था. पेंगविन की वेबसाइट पर सरू के बचपन, उनकी आत्मकथा और फिल्म को लेकर जानकारी दी गई है.

आस्ट्रेलिया के सिडनी में स्थित घोस्ट राइटर लैरी बट्रोस जिन्होंने सरू ब्रियरली की कहानी(ए लॉन्ग वे होम) लिखी, उन्होंने 13 फरवरी 2017 को अपने ट्विटर अकाउंट से सरू के साथ एक तस्वीर साझा की थी(लैरी को सरू के दायीं ओर चश्मा लगाए देखा जा सकता है) जिसे कैप्शन देते हुए लैरी ने लिखा – “सरू के साथ #Lion किताब लिखने के अपने सफर के बारे में इस बुधवार शाम 4 बजे के बाद रिचर्ड ग्लोवर 702 सिडनी के साथ साक्षात्कार।”

सरू की इस कहानी और पोस्टर में दिख रही तस्वीर को  abc.net.au और StarsUnfolded पर भी देखा जा सकता है।

बीजेपी के पोस्टर में इस गलती के बारे में सबसे पहले अमर उजाला के पत्रकार प्रदीप पांडे ने ट्वीट करके जानकारी दी थी.

निष्कर्ष 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ पोस्टर में लाभान्वित परिवार को दर्शाने वाली तस्वीर काफी समय से इन्टरनेट पर मौजूद है। ये तस्वीर सरू ब्रियरली और उनके परिवार की है. तस्वीर तब की है जब सरू ब्रियरली 5 साल की छोटी उम्र में अपने परिवार से बिछड़ जाने के कारण 25 साल बाद अपने परिवार के बीच पहुंचे थे। वो ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं. और एक बिजनेसमैन हैं.

दावा – बीजेपी के पोस्टर में ‘यथास्थान झुग्गी-झोपड़ी पुनर्वास परियोजना’ के लाभार्थी का परिवार

दावा करने वाला – अमित शाह,दिल्ली बीजेपी, सोशल मीडिया यूजर

सच – तस्वीर सरू ब्रियरली के परिवार की है जिसका लाभार्थी परियोजना से कोई संबंध नहीं है

बांग्लादेश, सीरिया की तीन तस्वीर जो दिल्ली के दंगों की बताई जा रही हैं

इन तीन तस्वीरों को आपने भी देखा होगा. एक तस्वीर में पुलिसकर्मी डरे हुए बच्चे को मारने के लिए डंडा उठाए हुए हैं. दूसरी तस्वीर में एक महिला छोटे-छोटे बच्चों को ढाढस बंधाते दिखाई देती है.और तीसरी तस्वीर एक बच्चे की है जिसका चेहरा खून से सना है. तीसरी तस्वीर काफी भयावह है इसलिए हम उसका चेहरा ढककर आपको दिखाएंगे. दावा किया जा रहा है ये तीनों तस्वीर हाल ही में हुए दिल्ली के दंगों के दौरान की हैं. हम बारी-बारी से वायरल तस्वीरों को आपको दिखाएंगे.

पहली तस्वीर

इस तस्वीर में पुलिसवाला बच्चे को लाठी से मारने के लिए धमका रहा है .तस्वीर के साथ कैप्शन है ‘बहुत बड़े आतंक को पीटते हुए दिल्ली पुलिस’

फेसबुक पर वायरल तस्वीर का स्क्रीन शॉट
फेसबुक पर वायरल तस्वीर का स्क्रीन शॉट

इसका आर्काइव्ड वर्ज़न आप यहां देख सकते हैं. पूर्व सांसद और हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए उदित राज नें भी इसे ट्विटर पर पोस्ट किया है.

दूसरी तस्वीर

दूसरी तस्वीर में एक महिला अपने बच्चों को गोद में छिपाकर ढाढस बंधा रही है.फेसबुक पर एक यूजर के अंग्रेजी में लिखे कैपशन का का हिन्दी अनुवाद है ‘ये तस्वीर मेरी यादों में हमेशा में रहेगी कि नरेंद्र मोदी ने मेंरे देश को क्या बना दिया.’

इस तस्वीर को भी उदित राज ने पोस्ट किया है.

तीसरी तस्वीर

यह तस्वीर एक बच्चे की है जिसके पूरे चेहरे से खून बह रहा है. इस तस्वीर मे बच्चे के चेहरे को हम नहीं दिखा रहे हैं क्योंकि ये बहुत भयावह है. इसके कैप्शन में लिखा है ‘’देश ये दर्द नहीं भूलेगा! स्कूल से घर आते बच्चे को भी दंगाइयों ने नहीं छोड़ा! अब तक एक बच्चे की जान लेने तक की खबर देश के सामने आयी है! दिल्ली दंगे की सोशल मीडिया पर आई हुई ये दर्दनाक तस्वीर! क्या कसूर था इस बच्चे का?’’    

ट्विटर पर वायरल तस्वीर का  स्क्रीन शॉट
ट्विटर पर वायरल तस्वीर का स्क्रीन शॉट

इसका आर्काइव्ड वर्ज़न आप यहां देख सकते हैं

ये भी पढ़िए

शाहीन बाग में महिला प्रदर्शनकारियों को पैसे बांटने वाले वीडियो का सच

फैक्ट चेक

पहली तस्वीर

हमने पहले उस तस्वीर की खोज शुरू की जिसमें एक बच्चे को मारने के लिए पुलिसवाला डंडा उठाए हुए दिखता है. रिवर्स इमेज सर्च करने पर हमे ये तस्वीर आसानी मिल जाती है. ये तस्वीर बांग्लादेश की है. और इसे 30 जून 2010 को ब्रिटेन के अखबार ‘The Guardian’ ने प्रकाशित किया था. तस्वीर को न्यूज एजेंसी ‘AFP’ के फोटो जर्नलिस्ट मुनीर-उज-ज़मान ने अपने कैमरे में कैद किया था. फोटो के कैप्शन के अनुसार साल 2010 में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में गार्मेंट फैक्ट्री के कर्मचारियों के प्रदर्शन के दौरान पुलिस से टकराव हुआ था. उसी दौरान एक पुलिसकर्मी की बच्चे को लाठी से धमकाने की तस्वीर है. गार्मेंट कर्मचारी कम सैलरी और खराब व्यवस्था के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे. कर्मचारियों ने शहर की मुख्य सड़क को जाम कर दिया था. कर्मचारियों को हटाने के लिए पुलिस ने आंसू गैस और वाटर कैनन भी छोड़े थे. ये तस्वीर और उस पर लिखा कैप्शन आप यहां देख सकते हैं.

BANGLADESH POLICE MAN THREATEN A CHILD WITH BATON (COURTSY:GETTY IMAGES/AFP)
BANGLADESH POLICE MAN THREATEN A CHILD WITH BATON (COURTSY:GETTY IMAGES/AFP)

दूसरी तस्वीर

दूसरी तस्वीर की भी असलियत हमें रिवर्स इमेज सर्च के ज़रिए पता चली. ये तस्वीर सीरिया के एलिप्पो शहर की है. 19 मई 2014 को  एलिप्पो शहर के पास साहौर  कस्बे को बम से उड़ा दिया जाता है. महिला का घर भी इस घटना में तबाह हो जाता है. तस्वीर इस घटना के बाद की है. महिला अपने छोटे-छोटे बच्चों को ढाढस बंधाती हुई दिखाई देती है. तस्वीर न्यूज एजेंसी AFP के फोटो जर्नलिस्ट ज़ेन अल-रिफाय ने ली है. हमे इसकी जानकारी getty images से मिली.

A SYRIAN WOMAN COMFORTS HER CHILDREN ( COURTSY : GETTY IMAGES/AFP)
A SYRIAN WOMAN COMFORTS HER CHILDREN ( COURTSY : GETTY IMAGES/AFP)

तीसरी तस्वीर

तीसरी तस्वीर भी हमे रिवर्स इमेज सर्च के दौरान Getty images  में मिली. ये तस्वीर सीरिया की राजधानी दमिश्क की है. 21 फरवरी 2018 को इस तस्वीर को न्यूज एजेंसी AFP के फोटो जर्नलिस्ट आमिर अलमोहिबनी ने खींची थी. दमिश्क के पूर्वी क्षेत्र में इस बच्चे को कफ्र बातना नामके अस्पताल में इलाज के लिए लाया गया था. उसी दौरान ये तस्वीर ली गई थी. ये बच्चा सीरियाई फाइटर प्लेन के हमले में घायल हो गया था

A SYRIAN WOUNDED BOY COVERED WITH BLOOD WAITING FOR TREATMENT (CORTSY:GETTY IMAGES/AFP)
A SYRIAN WOUNDED BOY COVERED WITH BLOOD WAITING FOR TREATMENT (COURTSY: GETTY IMAGES/AFP)

निष्कर्ष

इन तीनों तस्वीरों का दिल्ली के दंगों से कोई मतलब नहीं है. इनमें से एक तस्वीर बांग्लादेश की है जबकि दो तस्वीरें सीरिया की हैं.

Fact-Check : क्या हमास का समर्थन करने वाले केरल के लोगों ने इटली के झंडे लेकर पैदल मार्च किया ? सच यहां जानें

7 अक्टूबर को फिलिस्तीनी उग्रवादी संगठन हमास के द्वारा इजराइल पर हमला किए जाने के बाद अब युद्ध ने भीषण रूप ले लिया है। दोनों देश के खेमों वाले राष्ट्र भी अब युद्ध में शामिल होने की बातें कर रहे हैं। इस बीच सोशल मीडिया पर की वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनको युद्ध से जोड़कर देखा जा रहा है। भाजपा के पूर्व विधायक और BJYM के वर्तमान राष्ट्रीय सचिव तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने एक्स पर एक पोस्ट में गाजा को समर्थन देने वाला लोगों का एक वीडियो शेयर किया।

वीडियो में देखा जा सकता है कि लोग, हाथ में झंडा लेकर गाजा का समर्थन कर रहे हैं। इस दौरान बग्गा ने लिखा, Hamas terrorists supporters gathered in Kerala, instead of carrying Palestine flag 🇵🇸 they carried Italy Flag 🇮🇹 (हिन्दी – केरल में जुटे हमास आतंकियों के समर्थक, फिलिस्तीन का झंडा न लेकर इटली का झंडा लहराया)

भाजपा नेता के अलावा कई यूजर्स ने इस दावे का समर्थन किया। 

वायरल वीडियो का सच क्या है?

हमने वायरल वीडियो को बहुत ध्यान से देखा, तस्वीर को जूम करने पर हमने उस पर एक ओर W L F और दूसरी ओर R T Y(सम्भवतः PARTY) लिखा हुआ पाया। इसके बाद हमने कुछ रिलेटिड कीवर्ड्स को गूगल पर सर्च किया। हमें WELFARE PARTY OF INDIA का लोगो मिला। लोगों में वही दो कलर(रेड और ग्रीन)हैं, जो वायरल वीडियो में दिख रहे झंडे में नजर आ रहे हैं। 

हमने पार्टी की वेबसाइट भी स्कैन की, जहां पर हमें वायरल वीडियो में रेड और ग्रीन जैसे ये झंडे देखने को मिले। वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक 18 अप्रैल 2011 को देश में डगमगाती राजनीतिक व्यवस्था के कारण वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया का जन्म हुआ। यह केवल मौजूदा राजनीतिक दलों का जोड़ नहीं है, बल्कि भ्रष्ट, सांप्रदायिक, आपराधिक और अवसरवादी राजनीति का एक विकल्प है।

इसके बाद हमने पार्टी के ट्विटर अकाउंट पर वीडियो को खोजा। यहां पर हमें 20 अक्टूबर को शेयर किया हुआ यह वीडियो देखने को मिला। जिसके कैप्शन में लिखा है – We Indians with Gaza. Huge protest in Kerala, India by #WelfareParty in support Palestine.

निष्कर्ष

indiacheck ने अपनी पड़ताल में वायरल वीडियो में किए गए दावे को भ्रामक पाया है। दरअसल वायरल वीडियो में दिख रहा झंडा, केरल राज्य की स्थानीय ‘वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया’ का है।  

दावा – केरल में जुटे हमास आतंकियों के समर्थक, फिलिस्तीन का झंडा न लेकर इटली का झंडा लहराया

दावा किसने किया – भाजपा के पूर्व विधायक और BJYM के वर्तमान राष्ट्रीय सचिव तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने 

सच – दावा भ्रामक है

Fact-Check : इजरायल-फिलीस्तीन संघर्ष के बाद सोशल मीडिया पर आई वायरल वीडियो की बाढ़, वायरल वीडियो का सच जानें !

Israel-Philistine Conflict Viral Video : 7 अक्टूबर को फिलिस्तीनी उग्रवादी संगठन हमास के द्वारा इजराइल पर हमला किए जाने के बाद आतंकवादियों की घुसपैठ और हजारों रॉकेटों की गोलीबारी के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हैं। इस दौरान कुछ वीडियो ऐसे भी हैं, जो पुराने हैं और उनका वर्तमान संघर्ष से कोई लेना-देना नहीं है। हमने अपनी फैक्ट रिपोर्ट में कुछ ऐसे ही वीडियो की जांच की है।

वीडियो -1

एक वीडियो में बड़ी सी इमारत पर हमला किया जा रहा है। एक एक्स यूजर ने इसे शेयर करते हुए लिखा, इज़राइल ने ‘ऑपरेशन आयरन स्वोर्ड्स’ की घोषणा की, हजारों की संख्या में लोग बुलाए गए हैं, हमास के आंतरिक मंत्रालय(interior ministry) की इमारत पर पहला बड़ा जवाबी हवाई हमला शुरू किया 

वायरल वीडियो -1 का सच 

 वीडियो के कीफ्रेम्स को रिवर्स सर्च करने पर हमें ‘वॉयस ऑफ अमेरिका’ यूट्यूब चैनल पर 13 मई, 2023 को अपलोड किया गया, एक वीडियो मिला, जिसका शीर्षक था ‘इजरायली स्ट्राइक हिट्स हाउस इन नॉर्दर्न गाजा’। इसमें बताया गया कि इजरायली सेना द्वारा इस्लामिक जिहाद कमांडर मोहम्मद अबू अल अत्ता के अपार्टमेंट पर बमबारी के बाद इस्लामिक जिहाद विद्रोहियों ने दक्षिणी इजरायल की ओर रॉकेट लॉन्च किए थे।

इसके अलावा एपी आर्काइव ने भी उसी जानकारी के साथ उस समय एक वीडियो चलाया था। साफ है कि इजरायली सेना द्वारा गाजा पर हमले का वायरल वीडियो अभी का नहीं बल्कि करीब चार महीने पुराना है।

वीडियो – 2 

इजराइल और फिलिस्तीन के बीच बढ़ती हिंसा के बीच एक वीडियो इस दावे के साथ शेयर किया गया है कि इस्लाम की तीसरी सबसे पवित्र मस्जिद पर इजराइल ने बमबारी की है।

वायरल वीडियो -2 का सच 

हमने वायरल वीडियो के कीफ्रेम्स को गूगल रिवर्स इमेज पर सर्च किया। हमें, यही वीडियो 8 जून 2014 को एक यूट्यूब चैनल पर अपलोड हुआ मिला, चैनल के मुताबिक यह उवैस अल-क़रनी नाम की मस्जिद का वीडियो है, जो सीरिया के रक्का शहर में है,  इसे 2014 में आतंकवादी समूह आईएसआईएस ने ध्वस्त कर दिया था।

इसके अलावा रॉयटर्स ने भी मस्जिद को ध्वस्त किए जाने की घटना रिपोर्ट की थी। 

वीडियो 3 

तीसरे वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि भारी-भरकम भीड़ में कुछ लोग, एक लड़की के कपड़ों में आग लगाकर पीछे धकेल देते हैं, लड़की के चीख-पुकार के बावजूद भी कोई उसे बचाने के लिए आगे नहीं आता।

एक एक्स यूजर ने वीडियो को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा, यह रेइम में नेचर फेस्टिवल में इजरायली लड़की पर अत्याचार करने वाले हमास के जिहादी आतंकवादियों का शैतानी चेहरा है।

https://twitter.com/edrormba/status/1711749396482679093?t=EhRdGFjMMj7g5kj8vr6uog&s=19

वायरल वीडियो -3 का सच

हमने इनविड टूल की मदद से वायरल वीडियो से की-फ्रेम्स को निकालकर, गूगल रिवर्स इमेज पर सर्च किया। इस दौरान हमें मई 2015 की CNN की एक रिपोर्ट मिली। 

रिपोर्ट के मुताबिक यह वीडियो, ग्वाटेमाला के रियो ब्रावो गांव में 16 साल की एक लड़की को पीटने और जलाकर मारने का है।

निष्कर्ष

indiacheck ने अपनी पड़ताल में इजरायल-फिलीस्तीन कॉन्फ्लिक्ट के दौरान तमाम वायरल वीडियो को भ्रामक पाया है। ये वीडियो, दोनों देशों के वर्तमान संघर्ष में आग में घी डालने का काम कर रहे हैं।

Fact-Check : दैनिक जागरण ने भारतीय सेना के द्वारा पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक किये जाने की फेक न्यूज़ प्रकाशित की

मंगलवार को ‘दैनिक जागरण’ ने राष्ट्रीय संस्करण में पहले पृष्ठ पर ‘भारत ने पाकिस्तान पर फिर की सर्जिकल स्ट्राइक‘ शीर्षक के साथ एक खबर प्रकाशित की. यह खबर गगन कोहली द्वारा रिपोर्ट की गई. खबर में कहा गया कि, ‘सेना ने राजौरी-पुंछ में ढाई किलोमीटर अंदर जाकर आतंकियों के चार लॉन्चिंग पैड तबाह किए गए और सात से आठ आतंकियों की मौत हुई. गुलाम जम्मू-कश्मीर के कोटली क्षेत्र में आतंकियों के शिविरों पर बड़ी कारवाई की गयी. आगे कहा गया कि 12 से 15 सैनिक शनिवार रात को ही सीमा पार चले गये थे जोकि सकुशल लौट आयें हैं.

दैनिक जागरण ने इस शीर्षक के साथ ऑनलाइन समाचार भी प्रकाशित किया.

आर्काइव

क्या है खबर की सच्चाई ?

 प्रेस सूचना ब्यूरो के फैक्ट चेक संस्थान, पीआईबी फैक्ट चेक ने ट्विटर पर इस दावे का खंडन किया, जिसमें कहा गया कि भारतीय सेना के द्वारा पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिए जाने की जागरण की खबर झूठी है. रक्षा मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि 21 अगस्त को जनरल एरिया हमीरपुर में घुसपैठ की कोशिश को सेना द्वारा नाकाम किया गया और यह घटना सर्जिकल स्ट्राइक नहीं थी.

सेना ने क्या कहा ?

इंडिया टीवी और नवभारत टाइम्स ने रिपोर्ट प्रकाशित कर बताया कि, सेना ने मीडिया में आई सर्जिकल स्ट्राइक की खबर का खंडन किया है. डिफेंस पीआरओ ने एक बयान में कहा, “सर्जिकल स्ट्राइक के संबंध में एक खबर प्रकाशित की गई है. मैं आपको सूचित करना चाहता हूं कि राजौरी-पुंछ में ऐसा कोई ऑपरेशन नहीं किया गया है. कल घुसपैठ की कोशिश को नाकाम कर दिया गया था, जिसके लिए एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई है.”

सेना के अनुसार, “22 अगस्त की सुबह, सतर्क सैनिकों ने दो आतंकवादियों को बालाकोट सेक्टर के हमीरपुर क्षेत्र में खराब मौसम, घने कोहरे, घने पत्ते और ऊबड़-खाबड़ जमीन का उपयोग करके नियंत्रण रेखा पार करने का प्रयास करते हुए देखा.” सेना को भारी मात्रा में हथियार, गोला-बारूद आदि मिले हैं. सेना ने 1 एके 47, 2 मैगजीन, 30 राउंड गोलियां, 2 हथगोले और पाकिस्तान में बनी एक दवा शामिल हैं.

दैनिक जागरण ने खबर अपडेट की

दैनिक जागरण ने अपनी मूल खबर को अपडेट कर लिया है. खबर से “सर्जिकल स्ट्राइक” जैसे शब्दो को हटा लिया है. अब इस खबर का शीर्षक है, ”सेना ने सर्जिकल स्‍ट्राइक से किया इन्‍कार, कहा- घुसपैठ की कोशिश थी, उसे विफल बनाया गया” वहीँ खबर के लेखक गगन कोहली ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हुए यह दावा किया कि, उनकी खबर 101 प्रतिशत सही है और वह सबूत मांगे जाने पर फोटो और वीडियो पेश कर देंगे.

जागरण इंग्लिश ने एक रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए बताया कि, “रक्षा मंत्रालय ने भारत के द्वारा पाकिस्तान पर एक और सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले दावे को खारिज कर दिया है”.

द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक , भारतीय सेना ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में एलओसी के पास दो आतंकवादियों को मार गिराया और घुसपैठ की कोशिश भी नाकाम की.

निष्कर्ष

indiacheck ने अपनी पड़ताल में दैनिक जागरण की खबर को झूठा पाया है. रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, भारतीय सेना ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में एलओसी के पास दो आतंकवादियों को मार गिराया और घुसपैठ की कोशिश को नाकाम किया था.

दावा – भारतीय सेना ने एक बार फिर की पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक, राजौरी-पुंछ में ढाई किलोमीटर अंदर जाकर आतंकियों के चार लॉन्चिंग पैड तबाह किए गए जिसमें सात से आठ आतंकियों की मौत हुई

दावा किसने किया – दैनिक जागरण ने

सच – दावा झूठा है

Fact-Check : CJI डीवाई चंद्रचूड और गृहमंत्री अमित शाह ने लालकिले पर स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम में एकदूसरे को अभिवादन किया..वायरल दावा गलत है

एक वीडियो के स्क्रीनग्रैब की तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है जिसमें कथित तौर पर भारत के 50वें CJI डीवाई चंद्रचूड एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को हाथ जोड़कर अभिवादन रहें हैं. तस्वीर के साथ दावा किया जा रहा है कि गृह मंत्री अमित शाह ने उनके अभिवादन को नज़र अंदाज़ कर दिया. इस तस्वीर को सोशल मीडिया पर मुख्य न्यायधीश की पद प्रतिष्ठा और संस्कृति का मजाक बताते हुए शेयर किया गया है.

पत्रकारों ने भी इस तस्वीर को इसे दावे के साथ आगे शेयर किया.

वायरल तस्वीर का सच

कुछ कीवर्ड्स के साथ गूगल पर सर्च करने पर हमें ANI समाचार एजेंसी के द्वारा ट्वीट किया गया एक वीडियो देखने को मिला. वीडियो में देखा जा सकता है कि स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आपस में एक दूसरे को अभिवादन किया था. 11 सेकंड के इस वीडियो में 4 सेकंड पर न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ को गृह मंत्री अमित शाह के द्वारा अभिवादन करते हुए देखा जा सकता है. सोशल मीडिया पर वायरल स्क्रीन्ग्रैब वीडियो के 9 सेकंड पर लिया गया है जब चंद्रचूड़ अमित शाह की पत्नी को अभिवादन कर रहें हैं और शाह की पत्नी भी उनका अभिवादन कर रहीं हैं.

वीडियो में देखा जा सकता है कि जैसे ही डीवाई चंद्रचूड़ हाथ जोड़कर, अमित शाह के निकट पहुँचते हैं तो अमित शाह और उनकी पत्नी सोनल शाह खड़े होकर उनके पास आते हैं. अमित शाह, चंद्रचूड़ से हाथ मिलकर अभिवादन स्वीकार करते हैं और वापस पीछे की तरफ मुड़ जाते हैं, इस बीच चंद्रचूड़, अमित शाह की पत्नी सोनल शाह दोनों आपस में एक-दूसरे का अभिवादन कर रहे हैं इस दौरान कैमरे का फोकस चंद्रचूड़ और अमित शाह पर रहता है जब तक कैमरा अमित शाह की पत्नी सोनल शाह की तरफ मुड़ता है तब तक सोनल, चंद्रचूड़ के अभिवादन को हाथ जोड़कर स्वीकार कर चुकी होती हैं. इसलिए वायरल तस्वीर को देखकर ऐसा लग रहा है कि अमित शाह, न्यायधीश चंद्रचूड़ के अभिवादन को नज़रंदाज़ कर रहें हैं.

निष्कर्ष

indiacheck ने अपनी पड़ताल में वायरल तस्वीर के साथ किये गये दावे को भ्रामक पाया है. वीडियो में स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि अमित शाह ने CJI डीवाई चंद्रचूड के अभिवादन को नज़रंदाज़ नही किया था. सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीर वीडियो से तब क्लिक की गयी जब चंद्रचूड़, अमित शाह की पत्नी सोनल शाह का अभिवादन कर रहे थे और कैमरे का फोकस चंद्रचूड़ और अमित शाह पर ही बना रहा. जब तक कैमरे का फोकस सोनल शाह पर गया तब तक वह चंद्रचूड़ का अभिवादन कर चुकी थी.

Fact-Check : दरभंगा एम्स पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दावा गलत, एम्स निर्माण के लिए अभी जगह तय नहीं हुई

12 अगस्त 2023 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पश्चिम बंगाल के कोलकाता के क्षेत्रीय पंचायती राज परिषद को संबोधित कर रहे थे इस बीच उन्होंने दावा किया कि उनकी भाजपा सरकार ने पूर्वोतर में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए असम के गुवाहाटी से लेकर बंगाल के कल्याणी तक और झारखंड के देवघर से लेकर बिहार के दरभंगा तक नये अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) खोले हैं ताकि लोगो को इलाज के लिए 100 किलोमीटर दूर न जाना पड़े. मोदी ने आगे कहा कि हर कोई पूर्वी भारत में हो रहे “विकास की तेज गति” को देख रहा है।

आर्काइव

दरभंगा एम्स पर मोदी के दावे का सच

दरभंगा एम्स पर मोदी के बयान से बिहार के सत्ताधारी महागठबंधन खेमे में हंगामा मच गया. उन्होंने मोदी पर झूठ बोलने का आरोप लगते हुए कहा कि दरभंगा में अभी तक एम्स नहीं बना है.बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने पीएम मोदी के बयान को झूठा करार दिया और साथ ही यह दावा किया कि बिहार सरकार ने मिट्टी भराई के लिए 250 करोड़ रुपये से अधिक का आवंटन भी किया इसके बावजूद भी AIIMS नहीं बन सका.

तेजस्वी यादव ने स्वास्थय परिवार कल्याण मंत्री मनसुख एल मांडविया को लिखे एक पत्र को ट्वीट करते हुए कहा कि, “आज प्रधानमंत्री जी दरभंगा में AIIMS खुलवाने का झूठा श्रेय ले रहे थे। वस्तुस्थिति ये है कि #बिहार सरकार ने निःशुल्क 151 एकड़ ज़मीन केंद्र को इसकी स्थापना के लिए दिया है और साथ ही 250 करोड़ से अधिक मिट्टी भराई के लिए आवंटित किया लेकिन दुर्भाग्यवश राजनीति करते हुए केंद्र ने प्रस्तावित AIIMS के निर्माण को स्वीकृति नहीं दी। प्रधानमंत्री से देश कम से कम सत्य और तथ्य की अपेक्षा करता है लेकिन उन्होंने सफ़ेद झूठ बोला। तेजस्वी ने आगे कहा, जून माह में हमने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जी से दूरभाष पर वार्ता कर, इसकी स्वीकृति देकर निर्माण कराने का आग्रह किया और आशान्वित होकर चिट्ठी भी लिखा लेकिन आजतक कोई सकारात्मक कारवाई नहीं हुई है”।

उन्होंने मनसुख मंडाविया पर इस मामले पर पत्र या अनुरोध का जवाब नहीं देने का भी आरोप लगाया. तेजस्वी के ट्वीट के बाद मंडाविया ने शनिवार को तेजस्वी यादव पर तीखा हमला करते हुए एक ट्वीट में कहा कि, मोदी सरकार की मंशा साफ थी और 2020 में दरभंगा में एम्स बनाने की इजाजत दी गई थी. मंडाविया ने 26 मई 2023 का एक पत्र ट्वीट करते हुए तेजस्वी यादव पर उनकी सरकार आने पर स्वीकृत जमीन के बदलने की बात भी कही. इसके अलावा उन्होंने तेजस्वी यादव से कहा कि, वह राजनीती से बाहर आंए और जल्द से जल्द एम्स बनाने के लिये उचित जगह दें जिससे बिहार में एम्स का निर्माण हो सके.

मंडाविया ने ट्वीट में लिखा, “एम्स दरभंगा की अनुमति मोदी सरकार ने 19 सितंबर 2020 को दी थी और बिहार सरकार ने 3 नवंबर 2021 को पहली ज़मीन दी. इसके बाद आप सरकार में आये और राजनीति करते हुए 30 अप्रैल 2023 को यह जगह बदल दी. नियमों के अनुसार ज़मीन की जाँच करने के लिये एक्सपर्ट कमेटी ने ज़मीन को इंस्पेक्ट किया. 26 मई 2023 को भारत सरकार ने उपलब्ध करवाई गई दूसरी ज़मीन एम्स निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं है ऐसा लेटर बिहार सरकार को भेजा था जो इसके साथ शामिल है. आप ही बताओ ज़मीन को क्यूँ बदला गया, किसके हित में बदला गया”?

मंडाविया ने केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण द्वारा 26 मई को बिहार के अतिरिक्त मुख्य सचिव प्रत्यय अमृत को लिखा गया एक पत्र भी ट्वीट किया, जिसमें कहा गया था कि बिहार सरकार द्वारा आवंटित भूमि एम्स, दरभंगा की स्थापना के लिए उपयुक्त नहीं है. आगे मंडाविया ने कहा कि, “बिहार की विधानसभा में आपके ही विधायक ने एम्स के लिए दी गई अनुपयुक्त ज़मीन के लिए क्या कहा था? राजनीति से बाहर आइए और एम्स बनाने के लिये तत्काल उचित जगह दीजिए ! हम बिहार में एम्स बनाने के लिए तैयार हैं”.

एएनआई और पीटीआई ने बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें वह प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के दावे का खंडन करते हुए सुने जा सकते हैं.

हमें भाजपा नेता और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी का भी एक बयान सुनने को मिला. उन्होंने कहा कि, दरभंगा में एम्स नहीं बनने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिम्मेदार हैं.

22 जुलाई 2022 को जारी प्रेस सूचना ब्यूरो(PIB) के हवाले से यह जानकारी मिली कि, बिहार के दरभंगा में अभी तक AIIMS का निर्माण होना तो दूर की बात अभी तक राज्य सरकार द्वारा भूमि भी नहीं सौंपी गई है. राज्य सरकार द्वारा बाधा मुक्त भूमि सौंपने की तारीख से 48 महीने तक, परियोजना के पूरा होने की समय सीमा रखी गयी है.

वहीँ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दरभंगा एम्स मुद्दे पर केंद्र सरकार का घेराव करते हुए कहा कि, परियोजना के लिए राज्य सरकार द्वारा दी गयी भूमि पर केंद्र सरकार को एम्स बनाना चाहिए.

निष्कर्ष

तेजस्वी यादव, केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया, बीजेपी नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी और नीतीश कुमार के बयानों से यह स्पष्ट है कि अभी तक बिहार के दरभंगा में एम्स का निर्माण नहीं हो सका है इसकी पुष्टि स्वयं भाजपा के केन्द्रीय मंत्रियों ने की है. वहीँ पड़ताल में मिले लिखित स्रोत भी इस बात के गवाह हैं कि दरभंगा एम्स पर बिहार सरकार और केंद्र सरकार के अनबन के कारण जमीन भी स्वीकृत नहीं हो पाई है इसलिए प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा दरभंगा एम्स पर किया गया दावा झूठा साबित होता है.

Fact-Check : असंबंधित विरोध प्रदर्शन की पुरानी तस्वीरें हरियाणा हिंसा से जोड़कर शेयर की गईं

हरियाणा में नूंह हिंसा में अबतक 83 एफआईआर दर्ज, 159 लोग गिरफ्तार किये जा चुके हैं. हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने नूंह हिंसा पर कहा, सभी को शांति बनाए रखनी चाहिए. लोगों को सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट या फॉरवर्ड नहीं करना चाहिए. मामले की जांच चल रही है. इस बीच दंगो की चार खौफनाक तस्वीरों का फोटो कोलाज नूंह हिंसा से जोड़कर शेयर किया जा रहा है.

तस्वीरों के साथ एक भड़काऊ मेसेज भी शेयर किया जा रहा है जिसमें कहा गया कि, “वाह रे हरियाणा के वीर हिंदुओं तुम पूरे दिल्ली को बंधक बना सकते हो? तुम भारत सरकार को चैलेंज कर सकते हो? सड़कों को जाम कर सकते हो? लेकिन अपनी इज्जत नहीं बचा सकते? यह हाल तो होना ही था जब तुम सड़कों पर बैठकर इन्हीं जिहादी गद्दारों का समर्थन ले रहे थे? आज इन्हीं गद्दारों ने तुम्हें तुम्हारी औकात बता दिया बहुत दुख होता है, अफसोस भी होता है यह सब देखकर कि 120 करोड़ हिंदुओं के देश में हिंदुओं का यह हाल है? चारों तरफ मार खा रहे हो? चारों तरफ आपकी करोड़ों अरबों की संपत्ति जब मर्जी होता है वह फूंक कर शांति से अपने घर में चले जाते हैं और शांतिप्रिय कहलाते हैं! तुम जय श्री राम का नारा लगाकर दंगाई कहलाते हो? अब यही सब देखना बाकी रह गया था? कुछ गद्दार जिहादियों का पोस्ट देखा उन्होंने डाला कि मोनू मानेसर आने वाला था, अरे मोनू मानेसर आने वाला है तो क्या? वह पाकिस्तान से आ रहा था क्या? बल्कि मोनू मानेसर इसी भारत माता का सच्चा वीर संतान है जिसके नाम से तुम डरते हो!”

आर्काइव

वायरल दावे का सच

1. जले हुए मलबे के पास खड़े पुलिसकर्मी की तस्वीर 26 अगस्त 2017 को “नाइटमेयर इन पंचकुला” शीर्षक से टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में देखने को मिली. 

रिपोर्ट के मुताबिक न्यायालय के द्वारा डेरा सच्चा प्रमुख को बलात्कार के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद उनके अनुयायियों ने हरियाणा के पंचकूला समेत अन्य जगहों पर हिंसक प्रदर्शन किये थे.

2. दंगे को नियंत्रित करती आ रही पुलिस टीम वाली तस्वीर टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा 26 दिसंबर, 2019 को प्रकाशित एक रिपोर्ट में देखने को मिली. रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 2019 को कानपुर में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ एक रैली के दौरान पुलिस कर्मियों की प्रदर्शनकारियों से झड़प हो गई थी, यह तब की तस्वीर है.

3. वहीँ 20 फरवरी 2013 को हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में कार के जलने वाली तस्वीर देखने को मिली. रिपोर्ट का शीर्षक था- ‘राष्ट्रव्यापी ट्रेड यूनियन की हड़ताल से बैंक प्रभावित, नोएडा में विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया.

रिपोर्ट के मुताबिक यह तस्वीर उत्तर प्रदेश के नोएडा में 11 प्रमुख ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाए गए दो दिवसीय भारत बंद के दौरान ली गई थी.

4. एक आदमी को पीटते हुए पुलिसकर्मी की तस्वीर 21 दिसम्बर 2019 को प्रकाशित टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट में देखने को मिली.

रिपोर्ट के मुताबिक वायरल तस्वीर कानपुर के बाबूपुरवा इलाके में नए नागरिकता कानून के खिलाफ हुए प्रदर्शन की है. 

निष्कर्ष 

indiaheck ने अपनी पड़ताल में वायरल तस्वीरो के साथ किये गये दावों को भ्रामक पाया है. हरियाणा के नूह में हुई हिंसा से इन वायरल तस्वीरो का कोई लेना देना नही है. ये सभी पुरानी तस्वीरें हैं जिन्हें हाल में हुई हिंसा का बताकर शेयर किया जा रहा है. 

दावा किसने किया – दक्षिणपंथी सोशल मीडिया यूज़र्स ने

सच – दावा भ्रामक है

Fact-Check : हरियाणा के नूंह में मुसलमानों को भड़काने वाले यूट्यूबर अहसान मेवाती के भारत के नागरिक होने का दावा गलत है

हरियाणा के नूंह में हुई हिंसा में सोशल मीडिया का अहम रोल माना जा रहा है। पुलिस ने सोशल मीडिया पर प्रसारित किए गए 2300 वीडियो की पहचान की है। पुलिस का मानना है कि इन्हीं वीडियो ने हिंसा को उकसाने में अहम भूमिका निभाई। हरियाणा के भिवानी में दो मुस्लिम व्यापारियों की हत्या का आरोपी और स्वयंभू गोरक्षक मोनू मानेसर, बिट्टू बजरंगी के अलावा अहसान मेवाती का नाम भी उस लिस्ट में शामिल है जिन्होंने सोशल मीडिया पर भड़काऊ बयान देकर दंगे कराए। 

एक ट्वीट थ्रेड में, एहसान मेवाती ने मुस्लिम पक्ष के भड़काने वाले वीडियो साझा किए और मोनू मानेसर की हत्या को बढ़ावा देने वाली बात कही और 31 जुलाई को नूंह में हुए दंगों का जश्न भी मनाया। आर्काइव [12

वीडियो हिंसा से एक दिन पहले पोस्ट किया गया था जिसमें अहसान ने हिंदुओं को लेकर अपशब्द कहे थे। अहसान मेवाती का फेसबुक पेज 104K से अधिक फॉलोअर्स का दावा करने‌ वाले ने दावा किया कि वह राजस्थान के अलवर का रहने वाला है। इसके बाद कई लोगों ने सोशल मीडिया पर सवाल उठाए कि अहसान मेवाती भारतीय नागरिक होकर स्वयं को पाकिस्तानी क्यों बता रहा है ? 

कई नामचीन ट्विटर यूजर्स ने भी इस दावे को सच मानते हुए ट्वीट किए। 

अहसान मेवाती का सच 

एक फेसबुक अकाउंट के मुताबिक जानकारी मिली कि अहसान मेवाती पाकिस्तान के पंजाब में कहरोर पक्का का रहने वाला है। जो अपने नाम में ‘Ahsan Mewati Pakiistani’ लिखता है।

ध्यान देने वाली बात है कि वह पाकिस्तानी शब्द की स्पेलिंग(Pakiistani) लिखता है। 

इस फेसबुक अकाउंट में उनका फोन नंबर लिखा हुआ है और यह ‘030’ से शुरू होता है। जबकि पाकिस्तान के फ़ोन नंबर 11-अंकीय है और वह ’03’ से शुरू होता है

उनका यूट्यूब चैनल भी अहसान मेवाती के पाकिस्तानी होने का दावा करता है। यूट्यूब के अबाउट सेक्शन में उनका पता पाकिस्तान लिखा हुआ है।

अहसान मेवाती ने इंडिया टुडे को बताया कि वह पाकिस्तान से है और वह कभी भारत नहीं आए।अहसान एक यूट्यूबर और किसान हैं।उन्होंने यह भी कहा कि विभाजन के दौरान उनके पूर्वज भारत से(राजस्थान के अलवर) पाकिस्तान चले गए थे। 

निष्कर्ष 

indiacheck ने अपनी पड़ताल में वायरल दावे को भ्रामक पाया है। अहसान मेवाती, पाकिस्तानी हैं। मेवाती पाकिस्तान के पंजाब में कहरोर पक्का का रहने वाला है और वह कभी भारत नहीं आया।

 दावा – हरियाणा में दंगे भड़काने वाला अहसान मेवाती भारत में रहता है।

दावा किसने किया – दक्षिणपंथी यूजर्स ने

सच – दावा भ्रामक है 

Fact-Check : पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में पूर्वोत्तर में हुई हिंसा के दौरान कभी दौरा नहीं करने का बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला का दावा गलत है

मणिपुर में कुकी समुदाय की दो महिलाओ को निर्वस्त्र गुमाए जाने के बाद देशभर में सियासी हंगामा जारी है. विपक्ष प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को सदन में बोलने की मांग कर रहा है. TV चैनलों पर सत्ता पक्ष और विपक्ष में बहस हो रही है. इस बीच भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत के साथ 22 जुलाई को TV9 चैनल  पर बहस के दौरान एक दावा किया कि, यूपीए सरकार के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हिंसा भड़की तो उन्होंने हिंसा के दौरान कभी भी असम या किसी अन्य पूर्वोत्तर राज्य का दौरा नहीं किया या उसके बारे में बात नहीं की जबकि मनमोहन सिंह खुद असम से राज्यसभा संसद थे.  पूनावाला ने दावा किया, “यूपीए सरकार के 8 साल के कार्यकाल में 8,000 घटनाएं हुईं, जिनमें पूर्वोत्तर क्षेत्र के 2,000 लोग मारे गए। अगर मनमोहन सिंह ने एक शब्द भी कहा होता तो मैं अपना नाम बदल देता।” यूट्यूब पर फुल-लेंथ टीवी डिबेट वीडियो के हिस्से को 18:48 के टाइमस्टैम्प से सुना जा सकता है.

 बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला के दावे का सच 


नवम्बर 2004 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन का मणिपुर और असम का तीन दिवसीय दौरा

इंडिया टुडे और टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक जुलाई 2004 में असम राइफल्स के जवानों द्वारा सामाजिक कार्यकर्ता थांगजम मनोरमा देवी के साथ कथित सामूहिक बलात्कार और हत्या के विरोध में आंदोलनकारी मणिपुर में सड़कों पर उतर आए थे। आंदोलनकारियों ने संदिग्धों की गिरफ्तारी और सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम को रद्द करने की मांग की थी। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन ने नवम्बर 2004 को मणिपुर और असम का तीन दिवसीय दौरा किया था. 

ऐतिहासिक कंगला किला, जो असम राइफल्स का मुख्यालय हुआ करता था, के हस्तांतरण की लंबे समय से लंबित मणिपुरी मांग को पूरा करते हुए, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वहां के लोगो को संबोधित करते हुए कहा था कि “‘हिंसा को छोड़ दिया जाना चाहिए क्योंकि प्रगति और विकास केवल तभी आगे बढ़ाया जा सकता है जब शांति और व्यवस्था बनी रहे”। उन्होंने सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम के प्रावधानों की जांच करने और इसमें बदलाव के लिए सुझाव देने के लिए न्यायमूर्ति जीवन रेड्डी (विधि आयोग के पूर्व अध्यक्ष) की अध्यक्षता में एक समीक्षा समिति की स्थापना की घोषणा भी की थी.

अगस्त 2012 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का संसद में बयान

रायटर्स की रिपोर्ट में बताया गया कि अगस्त 2012 को जब असम में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा के डर से हजारों लोग मुंबई, बेंगलुरु और अन्य शहरों को पलायन करने लगे तब प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने देश के उत्तर-पूर्व के प्रवासियों को आश्वासन देते हुए संसद में अपने बयान में कहा था कि “जो कुछ दांव पर लगा है वह हमारे देश की एकता है। जो बात दांव पर लगी है वह सांप्रदायिक सद्भाव है. मैं आपको विश्वास दिलाता हूं… कि हम यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करेंगे कि हमारे मित्र, हमारे बच्चे और पूर्वोत्तर के हमारे नागरिक हमारे देश के किसी भी हिस्से में सुरक्षित महसूस करें।”बता दें कि, असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई द्वारा ‘सेना तैनाती में देरी’ के लिए यूपीए सरकार को दोषी ठहराए जाने के बाद डॉ. मनमोहन सिंह ने प्रभावित लोगों से मिलने के लिए असम के कोकराझार में राहत शिविरों का दौरा किया था। वहीँ हिंसा प्रभावित लोगों को राहत और पुनर्वास की सुविधा के लिए असम सरकार को 100 करोड़ रुपये की तत्काल सहायता की घोषणा  भी की थी.


जनवरी 2009 को मनमोहन सिंह का असम-मेघालय दौरा


मेघालय के पाइन सिटी में नॉर्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस के उद्घाटन कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे थे. उस दौरान असम शहर में हिंसा छिड़ी हुई थी जिसका जायजा लेने पीएम एक दिन पहले गुवाहाटी पहुंचे और अगली सुबह हेलीकॉप्टर से शिलांग के लिए रवाना हुए.गुवाहाटी पहुंचने पर सिंह ने राज्यपाल एससी माथुर और मुख्यमंत्री तरूण गोगोई से मुलाकात की। सूत्रों ने कहा कि पीएम ने उग्रवाद के खिलाफ अभियान में असम सरकार को हरसंभव मदद का आश्वासन दिया।

4 फरवरी 2014 को अरुणाचल प्रदेश के छात्र निडो तानियाम की हत्या के ख़िलाफ़ हिंसा पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का वक्तव्य

अरुणाचल प्रदेश के छात्र निडो तानियाम, जिनकी जनवरी 2014 को दिल्ली के लाजपत नगर में हत्या कर दी गई थी पर अपने बयान में प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि ,“अरुणाचल प्रदेश के छात्र निडो तानियाम पर हमला अत्यंत निंदनीय है। हालांकि निडो तानियाम की मौत का वास्तविक कारण शव परीक्षण रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा, लेकिन उनके निधन से पहले हुई हिंसा दुखद और शर्मनाक है। हमारी सरकार दोषियों को दंडित करने और देश के अन्य हिस्सों, विशेषकर उत्तर पूर्व से दिल्ली आने या रहने वाले छात्रों और नागरिकों को प्रभावी सुरक्षा प्रदान करने के लिए हर संभव प्रयास करेगी”।

निष्कर्ष

indiacheck ने अपनी पड़ताल में बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला के दावे को झूठा पाया है. यूपीए सरकार के कार्यकाल में हिंसा भड़कने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कई बार पूर्वोतर राज्यों का दौरा किया था.

दावा – यूपीए सरकार के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हिंसा भड़की तो उन्होंने हिंसा के दौरान कभी भी असम या किसी अन्य पूर्वोत्तर राज्य का दौरा नहीं किया या उसके बारे में बात नहीं की

दावा किसने किया – भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने

सच – दावा झूठा है

Fact-Check : ISRO की स्थापना में नहीं था जवाहरलाल नेहरू का हाथ ? भाजपा समर्थकों का दावा झूठा

चंद्रयान-3 का लॉन्च शुक्रवार को सफ़लतापूर्वक पूरा हो गया है। चंद्रमिशन के तहत चांद पर भेजा गया चंद्रयान-3, 5 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करेगा। चंद्रयान-3 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के स्पेस सेंटर से शुक्रवार दोपहर 2.35 बजे लॉन्च किया गया था।

फ़्रांस दौरे पर प्रधानमंत्री मोदी ने चंद्रयान-3 का लॉन्च होना, देश के लिए गौरव की बात बताया। उन्होंने कहा चन्द्रयान 3 भारत की अंतरिक्ष यात्रा में एक शानदार चैप्टर की शुरुआत है। साथ ही उन्होंने देश के वैज्ञानिकों के प्रयास को भी सलाम किया”।

इस बीच सोशल मीडिया पर एक बहस छिड़ गई। जहां भाजपा समर्थक, चंद्रयान-3 के सफल प्रक्षेपण का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को दे रहे हैं वहीं कांग्रेस समर्थक इसका श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू को दे रहे हैं।

कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने ट्वीट करते हुए लिखा, “पंडित नेहरू द्वारा सपना देखा गया, इंदिरा गांधी जी द्वारा पोषित और राजीव गांधी जी और डॉ. मनमोहन सिंह जी द्वारा महान ऊंचाइयों पर ले जाया गया @isro एक नया मील का पत्थर हासिल करता है!

 सभी के लिए गर्व का क्षण, जब हम चंद्रमा पर विजय प्राप्त करने के लिए #चंद्रयान3 को उत्साहपूर्वक उड़ान भरते हुए देख रहे हैं! जय हिन्द” 

वेणुगोपाल के ट्वीट को भाजपा के राष्ट्रीय आईटी सेल प्रभारी अमित मालवीय ने रिट्वीट करते हुए बताया कि इसरो की स्थापना का श्रेय नेहरू को नहीं जा सकता। क्योंकि नेहरू की मृत्यु मई 1964 में हुई और इसरो की स्थापना अगस्त 1969 को हुई। 

आर्काइव

ट्विटर पर सक्रिय रहने वाले पूर्व प्रशासनिक अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह ने ट्विटर पर चन्द्रयान 3 के लांच होने के बाद देश में बढ़ती साम्प्रदायिकता को लेकर केन्द्र सरकार पर तंज कसा। अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा – “अगर @isro स्थापित करने की जगह,पंडित नेहरू भी गौमूत्र-गोबर,मंदिर-मस्जिद, दंगा फ़साद करते-कराते रहते तो क्या आज #चन्द्रयान जाता?” 

ट्विटर पर अक्सर भ्रामक पोस्ट करने वाले यूजर मिस्टर सिन्हा ने सूर्य प्रताप सिंह के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए बताया कि, “नेहरू जी की मृत्यु 1964 में हुई थी और इसरो की स्थापना 5 साल बाद 1969 में हुई थी, तो इसरो की स्थापना नेहरू कैसे कर सकते हैं”। 

आर्काइव 

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने भी चन्द्रयान 3 के सफल प्रक्षेपण की वैज्ञानिकों और देशवासियों को बधाई दी। साथ ही उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू को याद करते हुए ट्वीट कर कहा, “आज स्वर्ग में बैठे हुए पंडित जवाहर लाल नेहरू अपने सपने को वृहद रूप में फलते फूलते देखकर मुस्करा रहे होंगे”।

आर्काइव 

एक अन्य ट्वीट जिसमें कहा गया इसरो की स्थापना के समय नेहरू जीवित नहीं थे।

आर्काइव

भाजपा के दावे का सच ? 

इसरो की वेबसाइट ( Isro.gov.in ) पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक इसरो भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग (डीओएस) का एक प्रमुख अंग है। इसरो को पहले भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) के नाम से जाना जाता था , जिसे 1962 में तत्कालीन भारत सरकार(जवाहरलाल नेहरू) द्वारा स्थापित किया गया था, जिसकी कल्पना डॉ. विक्रम साराभाई ने की थी।

 अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के लिए विस्तारित भूमिका के साथ INCOSPAR को हटाकर 15 अगस्त, 1969 को इसरो का गठन किया गया। 

हमें इसरो पत्रिका का अप्रैल-दिसंबर 2011 का एक अंक मिला। जिसके पेज नंबर 2 पर भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। इसमें बताया गया कि अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति की (INCOSPAR) 1962 में स्थापना के साथ ही देश में अंतरिक्ष गतिविधियों की शुरुआत हुई।उसी वर्ष, थुम्बा पर इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (टीईआरएलएस), निकट तिरुवनंतपुरम, भी शुरू किया गया था।

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को संस्थागत रूप दिया गया। 

स्पष्ट है कि INCOSPAR का नाम बदलकर ही 1969 में इसरो कर दिया गया था। 

निष्कर्ष 

indiacheck ने अपनी पड़ताल में वायरल दावे को भ्रामक पाया है। दरअसल इसरो को पहले भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) के नाम से जाना जाता था, जिसे 1962 में तत्कालीन भारत सरकार(जवाहरलाल नेहरू) द्वारा स्थापित किया गया था, जिसकी कल्पना डॉ. विक्रम साराभाई ने की थी। 

Fact-Check : वायरल वीडियो में नजर आ रहे सेना के जवान ट्रेन को धक्का देकर स्टार्ट नहीं कर रहे हैं

सोशल मीडिया पर एक ट्रेन को धक्का लगाने वाला वीडियो खूब वायरल है। वीडियो में देखा जा सकता है कि यात्री, पुलिसकर्मी, सेना के जवान और रेलवे कर्मचारी एक ट्रेन को धकेल रहे हैं। इस वीडियो पर कांग्रेस नेताओं ने चुटकी लेते हुए तंज कसा है।  

भारतीय युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी ने वायरल वीडियो को ट्विटर पर शेयर किया  और उस पर तंज कसते हुए लिखा – 

“75 सालों में पहली बार….

New India में Train Start करने की Ninja Technique… Thank You Modi ji.”

आर्काइव

भारतीय युवा कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ने वीडियो को शेयर करते हुए लिखा – “अद्भुत अविश्वसनीय अकल्पनीय

भाजपा सरकार ने किया अद्भुत कारनामा, 70 साल में जो नहीं हुआ वो अब हो रहा है, ट्रेन को भी धक्का लगाना पड़ रहा है।”

आर्काइव

वहीं ओडिशा युथ कांग्रेस ने वीडियो को ट्वीट कर कैप्शन में लिखा – “भाजपा सरकार ने किया अद्भुत कारनामा, 70 साल में जो नहीं हुआ वो अब 9 साल में हो रहा है, ट्रेन को भी धक्का लगाना पड़ रहा है।

बधाई हो अश्विनी वैष्णव, बधाई हो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ये है आप का न्यू इंडिया”

आर्काइव

वहीं ABP न्यूज़ ने भी सच मानकर इस वीडियो को लेकर एक खबर प्रकाशित की। 

वायरल वीडियो का सच 

Indian army pushed train’ कीवर्ड से सर्च करने पर हमें 10 जुलाई को प्रकाशित News 18 की रिपोर्ट मिलीं जिसमें वायरल वीडियो के फ्रेम्स को देखा जा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक हावड़ा-सिकंदराबाद मार्ग फलकनुमा एक्सप्रेस के पांच डिब्बों में भीषण आग लग गई थी। आग अधिक ना फैल जाय इसलिए बचाव के लिए रेलवे कर्मचारी, पुलिसकर्मी और सेना के जवानों के साथ मिलकर यात्रियों ने बाकी डिब्बों को अलग करना शुरू किया।

हमें साउथ सेन्ट्रल रेलवे का एक ट्वीट भी मिला। जिसमें वायरल वीडियो को रिट्वीट कर उसका खंडन किया गया। ट्वीट में कहा गया कि “यह वीडियो 7 जुलाई, 2023 को ट्रेन नंबर 12703 (HWH-SC) में आग लगने की घटना से संबंधित है। यह 07.07.23 को ट्रेन नंबर 12703 (HWH-SC) में आग लगने की घटना से संबंधित है।यह वीडियो आग को और अधिक फैलने से रोकने के लिए रेलवे कर्मियों और स्थानीय पुलिस द्वारा पीछे के डिब्बों को अलग करने के सचेत निर्णय के बारे में है।यह इंजन की  प्रतीक्षा किए बिना की गई एक आपातकालीन कार्रवाई थी”।

तेलंगाना राज्य के डीजीपी ने इस घटना पर ट्वीट करते हुए बताया कि , “भोंगिर ग्रामीण पीएस सीमा के पास फलकनुमा एक्सप्रेस में आग लगने के बाद सभी यात्रियों को सुरक्षित निकाल लिया गया और बसों में स्थानांतरित कर दिया गया। पुलिस, अग्निशमन विभाग और रेलवे समन्वय से काम कर रहे हैं। अब तक किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है. 18 डिब्बों में से 11 को अलग कर सुरक्षित ले जाया गया है। 7 बोगियों में आग लग गई, जिनमें से फिलहाल 3 बोगियों में आग बुझ गई है.”

पीआईबी ने भी वायरल दावे का खंडन किया है। 

निष्कर्ष

indiacheck ने अपनी पड़ताल में पाया कि हावड़ा-सिकंदराबाद मार्ग फलकनुमा एक्सप्रेस के पांच डिब्बों में भीषण आग लग गई थी। यह आग पूरी ट्रेन में न फैल जाए इसलिए बचाव के लिए बिना इंजन के द्वारा ट्रेन के डिब्बों को धक्का लगाकर अलग किया गया।

दावा – सेना के जवान धक्का लगाकर ट्रेन को स्टार्ट कर रहे हैं 

दावा किसने किया – कांग्रेस नेताओं ने

निष्कर्ष – दावा भ्रामक है 

Fact-Check : वायरल वीडियो में नजर आ रहे मुस्लिम शख्स ने अपनी बेटी से निकाह नहीं किया

एक बेटी के द्वारा अपने पिता की चौथी पत्नी बताने वाला वीडियो सोशल मीडिया पर खूब शेयर हो रहा है, वीडियो में देखा जा सकता है कि एक रिपोर्टर के सवाल पर पूछने पर महिला कहती है, “मैंने सुना था कि राबिया नाम की जो लड़कियां होती हैं वो चौथी बेटी होती है लेकिन मैं चौथी बेटी तो नहीं हूं क्योंकि मैं दूसरे नम्बर पर हूं और नाम का यही मतलब है तो मैंने सोचा चलो चौथे नम्बर पर ही फिट होना है तो शादी ही कर लेती हूं और चौथी बीवी बन जाती हूं”। 

वीडियो को दक्षिणपंथी सोशल मीडिया यूजर्स के द्वारा खूब शेयर किया गया। काजल हिन्दुस्तानी ने ट्वीट करते हुए कैप्शन में लिखा,  “हे भगवान ये मैं क्या सुन रही हूँ” आर्काइव

सूरज सिंह राजपूत नाम के एक ट्विटर यूजर ने वीडियो को शेयर करते हुए लिखा – “बेटी को ही बीवी बना लिया।

बंद करो रे !! ये शरीयत कानून

#UCC लाओ 

अपने पिता की चौथी पत्नी होने को सही ठहराने वाली एक बेटी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है..”

आर्काइव

वायरल दावे का समर्थन करने वाले कुछ अन्य ट्वीट्स यहां देखे जा सकते हैं।

वहीं फेसबुक पर भी वायरल वीडियो को यहांयहां,यहां और यहां देखा जा सकता है। 

वायरल वीडियो का सच 

कुछ की-वर्ड के साथ सर्च करने पर मुस्लिम शख्स और उसकी पत्नी की तस्वीर दर्शाती propakistani.pk में प्रकाशित एक रिपोर्ट देखने को मिली। जून 2021 को प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया कि अपनी तीन शादियां असफल रहने के बाद 50 वर्षीय आमिर खान ने राबिया को चौथी शादी के लिए प्रपोज़ किया। राबिया उसके पिता के स्कूल में काम करती थी।

आमिर खान और राबिया की शादी होने के बाद दोनों का इंटरव्यू डेली पाकिस्तान के यूट्यूब चैनल पर देखने को मिला। वीडियो के 1:20 टाइमस्टैम्प पर बताया गया कि राबिया, आमिर खान की स्टूडेंट थीं। आमिर ने राबिया को प्रोपोज किया तो वह निकाह के लिए तैयार हो गई। 

डेली मोशन पर उपलब्ध एक इंटरव्यू में आमिर को यह स्वीकार करते हुए सुना जा सकता है कि राबिया उनकी शिष्या थीं। लाहौर में एक कम्प्यूटर कोर्स के दौरान एक महीने के लिए आमिर, राबिया के शिक्षक रहे थे।

वहीं हमें एक वायरल दावे का खंडन करते हुए स्वयं आमिर खान का एक स्पष्टीकरण वीडियो देखने को मिला। दावा यह किया गया था कि “मुफ़्ती तकी लाहौरी ने लाहौर में अपनी एक शिष्या से चौथी बार शादी की”।

आमिर ने वायरल दावे का खंडन करते हुए कहा कि मैं कोई मुफ्ती तकी लाहौरी नहीं हूं बल्कि मेरा नाम आमिर खान है और मेरे साथ वीडियो में दिख रही मेरी पत्नी राबिया लियाकत है। 

निष्कर्ष

indiacheck ने अपनी पड़ताल में वायरल वीडियो के साथ किए गए दावे को भ्रामक पाया है। वायरल वीडियो में दिख रहा शख्स आमिर खान है और उसके साथ निकाह करने वाली महिला उसकी शिष्या राबिया लियाकत है। 2 साल पुराने इस वायरल वीडियो का सम्बन्ध पाकिस्तान से है।

दावा – एक मुस्लिम पिता ने अपनी ही बेटी से निकाह कर लिया 

दावा किसने किया – दक्षिणपंथी सोशल मीडिया यूजर्स ने 

सच – दावा भ्रामक है 

Fact-check: साल 2019 में हुए अल्जीरियाई राष्ट्रपति अब्देल अज़ीज़ बुउटफ्लिका के विरोध प्रदर्शन का वीडियो हाल में हो रहे फ्रांस दंगों से जोड़कर वायरल

पुलिस की गोली से मारे गए 17 साल के युवक नाहेल एम की मौत के बाद फ्रांस पिछले 10 दिनों से लगातार जल रहा है। फ्रांस के पेरिस, मार्सिले, लियोन जैसे कई बड़े शहरों में तबाही देखने को मिली है. नाहेल उत्तरी अफ्रीकी मूल का एक मुस्लिम युवक था. फ्रांस में लंबे समय से पुलिस पर आरोप लग रहे थे कि वह नस्ल देख कर कार्रवाई करते हैं। इस बीच सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है. वीडियो में प्रदर्शनकारियों को पेरिस के सेंट्रल डे ला रिपब्लिक में इकट्ठा होते हुए और अल्जीरियाई झंडे फहराते हुए देखा जा सकता है.

भारत में दक्षिणपंथ के समर्थकों ने इस वीडियो को शेयर करते हुए दावा किया कि फ्रांस में मारे गए 17 वर्षीय नाहेल के समर्थन में जुटे प्रदर्शनकारियों ने जिस तरह पेरिस के प्लेस डे ला रिपब्लिक पर कब्जा कर लिया है यदि हिंदुस्तान के हिन्दू संभल कर एक नहीं हुए तो उनके यहाँ पर भी कोई कल को इसी तरह कब्जा कर लेगा.

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यह भी पढ़ें: फ्रांस में दंगे रोकने के लिए योगी आदित्यनाथ को भेजने की मांग करने वाले प्रोफेसर एन जॉन कैम का ट्वीटर हैंडल असली या फर्जी?

वायरल वीडियो का सच क्या है ?  

वायरल वीडियो का सच पता लगाने के लिए हमने कुछ की फ्रेम्स को सर्च किया. इस दौरान हमें फ्रेंच भाषा में प्रकाशित कई रिपोर्ट्स देखने को मिलीं.

एक रिपोर्ट के मुताबिक फ्रेंको-अल्जीरियाई लोगों ने रविवार, 17 मार्च 2019 को पेरिस और अन्य जगहों पर अल्जीरिया के वर्तमान राष्ट्रपति अब्देल अज़ीज़ बुउटफ्लिका के खिलाफ प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन 82 वर्षीय अब्देल अज़ीज़ बुउटफ्लिका के संभावित पांचवें कार्यकाल के विरोध में किया जा रहा था. एक अन्य मीडिया रिपोर्ट VOX.COM में प्रदर्शनकारियों की तस्वीर दिखाती हुई हेडलाइन दी गयी ,”अल्जीरिया के राष्ट्रपति पांचवें कार्यकाल के लिए चुनाव नहीं लड़ेंगे। यह प्रदर्शनकारियों के लिए बहुत बड़ी जीत है”

तस्वीर के नीचे कैप्शन में लिखा है, 10 मार्च, 2019 को पेरिस, फ्रांस में राष्ट्रपति अब्देल अज़ीज़ बुउटफ्लिका के पांचवें राष्ट्रपति कार्यकाल के विरोध में फ्रांसीसी अल्जीरियाई प्रदर्शनकारियों ने प्लेस डे ला रिपब्लिक पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया. 

कुछ कीवर्ड सर्च करने पर रॉयटर्स एपी न्यूज़ द गार्जियन , बीबीसी और अल जजीरा की रिपोर्ट्स मिलीं जिसमें इस विरोध प्रदर्शन की कवरेज की गई थी।  

साथ ही हमें एक ट्विटर अकाउंट पर इसी तरह का वायरल वीडियो देखने को मिला। जो 10 मार्च 2019 को ट्वीट किया गया था। ट्वीट के कैप्शन के मुताबिक, “फ्रांस में रहने वाले फ्रांसीसी-अल्जीरियाई और अल्जीरियाई लोग पांचवें कार्यकाल के लिए बुउटफ्लिका की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे हैं। पेरिस में प्लेस डे ला रिपब्लिक, अल्जीरियाई झंडों और स्वतंत्र और लोकतांत्रिक अल्जीरिया का आह्वान करने वाले बैनरों से भरा हुआ है”।

वहीं AP Archive  के यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध वीडियो में भी पेरिस के प्लेस डे ला रिपब्लिक पर विरोध प्रदर्शन के कुछ फ्रेम्स देखे जा सकते हैं।

कैप्शन के मुताबिक प्रदर्शनकारियों ने अरब स्प्रिंग, “अश-शब युरिद इस्क़त अन-निज़ाम” प्रसिद्ध नारा लगाया। जिसका अर्थ है, “लोग शासन को गिराना चाहते हैं”।

निष्कर्ष

indiacheck ने अपनी पड़ताल में वायरल वीडियो के साथ किए गए दावे को भ्रामक पाया है. वीडियो मार्च 2019 का है जब फ्रांस के पेरिस में प्लेस डे ला रिपब्लिक पर अल्जीरियाई प्रवासियों ने अल्जीरिया के राष्ट्रपति अब्देल अज़ीज़ बुउटफ्लिका के सम्भावित पांचवें कार्यकाल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था.

दावा – फ्रांस में मारे गए 17 वर्षीय नाहेल के समर्थन में जुटे प्रदर्शनकारियों ने जिस तरह पेरिस के प्लेस डे ला रिपब्लिक पर कब्जा कर लिया है यदि हिंदुस्तान के हिन्दू संभल कर एक नहीं हुए तो उनके यहाँ पर भी कोई कल को इसी तरह कब्जा कर लेगा. 

दावा किसने किया – दक्षिणपंथी सोशल मीडिया यूजर्स ने

सच – दावा भ्रामक है 

Fact-Check : क्या सावन माह में वाराणसी के रास्ते बिहार, झारखंड जाने वाले रेल यात्रियों को नॉनवेज खाना उपलब्ध नहीं होगा ?

इस बार भगवान शिव की कृपा भक्तों पर 58 दिनों तक बरसने वाली है।4 जुलाई से सावन का पवित्र महीना शुरू होकर 31 अगस्त तक चलेगा। वहीं 18 जुलाई से 16 अगस्त तक अधिक मास रहेगा। इसी वजह से इस वर्ष सावन का महीना 2 महीने का होगा। इस दौरान कई मीडिया संस्थानों में एक खबर प्रकाशित की है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि‌ भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम (आईआरसीटीसी) ने सावन माह में वाराणसी के रास्ते बिहार, झारखंड जाने वाले रेल यात्रियों को नॉनवेज खाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। साथ में फूड मेन्यू में यह भी दावा किया जा रहा है कि सावन के दिनों में ट्रेन में बिना लहसुन – प्याज वाला भोजन ही उपलब्ध कराया जाएगा। यह व्यवस्था पूरे सावन माह में लागू रहेगी। सावन शुरू होते ही 4 जुलाई से मांसाहार बंद हो जाएगा। 

दावा करने वाले संस्थानों में एएनआई समाचार एजेंसीज़ी बिहार झारखंड न्यूज़बिहार तकहिन्दुस्तान टाइम्स , गुड न्यूज़ टुडेआजतकटाइम्स नाउएबीपी न्यूज़अमर उजाला और प्रभात खबर शामिल हैं।

 

वायरल दावे का सच क्या है?

वायरल दावे की पुष्टि के लिए हमने IRCTC के ट्विटर हैंडल को स्क्रोल किया लेकिन हमें यहां पर कोई भी स्पष्टीकरण देखने को नहीं मिला। 

आईआरसीटीसी(IRCTC)ने रविवार (2 जुलाई) को उन दावों का खंडन किया जिसमें यह कहा गया कि उसकी खानपान संस्था(IRCTC) ‘सावन’ के महीने में बिहार में केवल शाकाहारी खाद्य पदार्थ ही परोसेगी। मीडिया संस्थानों की रिपोर्टों पर प्रतिक्रिया देते हुए आईआरसीटीसी ने कहा, “IRCTC की ओर से ऐसा कोई निर्देश जारी नहीं किया गया है।सभी स्वीकृत वस्तुएँ खाद्य इकाइयों से यात्रियों को बिक्री के लिए उपलब्ध हैं“।

साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि यात्रियों की पसंद के अनुसार बिना प्याज और लहसुन का भोजन भी उपलब्ध होगा। 

उपरोक्त ट्वीट में देखा जा सकता है कि मीडिया संस्थानों ने अपनी रिपोर्ट प्रकाशित कर दावा किया तो आईआरसीटीसी ने ट्वीट के रिप्लाई में दावे का खंडन किया है। ट्वीट से स्पष्ट है कि सावन माह के दौरान शिवभक्तों को बिना लहसुन प्याज वाला भोजन उपलब्ध होगा वहीं जो लोग मांसाहार का सेवन करना चाहते हैं तो इस पर भी कोई प्रतिबंध नहीं रहेगा।

हमें कई रिपोर्ट ऐसी भी मिली जिसमें वायरल दावे का खंडन किया गया। इन्हें यहां और यहां देखा जा सकता है। 

निष्कर्ष

indiacheck ने अपनी पड़ताल में वायरल दावे को भ्रामक पाया है। IRCTC ने मीडिया संस्थानों की रिपोर्ट्स पर प्रतिक्रिया देते हुए वायरल दावे का खंडन किया है। सावन माह के दौरान शिवभक्तों को बिना लहसुन प्याज वाला भोजन उपलब्ध होगा वहीं जो लोग मांसाहार का सेवन करना चाहते हैं तो इस पर भी कोई प्रतिबंध नहीं रहेगा।

दावा – आईआरसीटीसी ने सावन के महीने में नॉनवेज खाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। सावन माह में वाराणसी के रास्ते बिहार, झारखंड जाने वाले रेल यात्रियों को नॉनवेज खाना उपलब्ध नहीं होगा।

दावा किसने किया – मीडिया संस्थानों ने

सच – दावा भ्रामक है 

FACT CHECK: फ्रांस में दंगे रोकने के लिए योगी आदित्यनाथ को भेजने की मांग करने वाले प्रोफेसर एन जॉन कैम का ट्वीटर हैंडल असली या फर्जी?

फ्रांस में भीषण दंगे जारी हैं, गुस्साए लोगों के द्वारा जगह-जगह पर आगजनी की जा रही है। इस बीच सोशल मीडिया पर एक ट्वीट को लेकर जबरदस्त तकरार जारी है। दरअसल एक वरिष्ठ इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट होने का दावा करने वाले प्रोफेसर एन जॉन कैम नाम के ट्विटर यूजर ने शुक्रवार को एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने फ्रांस में दंगे रोकने के लिए ‘योगी मॉडल’ की सिफारिश की। एक और ट्वीट में जॉन कैम ने फ्रांस में योगी आदित्यनाथ को भेजें जाने की भारत से मांग की।

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वहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय ने शनिवार को उस ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा कि, “जब भी विश्व के किसी भी हिस्से में उग्रवाद दंगे भड़काता है, अराजकता फैलती है और कानून एवं व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होती है, तो दुनिया सांत्वना तलाशती है और उत्तर प्रदेश में महाराज जी द्वारा स्थापित कानून एवं व्यवस्था के परिवर्तनकारी “योगी मॉडल” के लिए तरसती है।(हिन्दी अनुवाद शब्दशः)

इसके बाद तमाम भारतीय मीडिया संस्थानों ने तथाकथित तौर पर फ्रांस में दंगे रुकवाने के लिए की गई ‘योगी मॉडल’ की सिफारिश में कसीदे पढ़ने शुरू किए। इनमें ABP NewsNews 18India TVNews Nation और Zee News के अलावा प्रिंट मीडिया के वेबपोर्टल शामिल भी हैं।

जॉन कैम के वायरल ट्वीट से सीएम योगी आदित्यनाथ की सराहना करने वालो में ABP News के दो पत्रकार अभिषेक उपाध्याय और विकास भदौरिया भी शामिल हैं। 

प्रोफेसर एन जॉन कैम के वायरल ट्वीट का सच

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर कुछ यूजर्स के द्वारा कुछ ऐसी अटकलें लगाई गईं कि यह अकाउंट वास्तव में डॉ. नरेंद्र विक्रमादित्य यादव का है, जिन्हें पहले धोखाधड़ी के एक मामले में हैदराबाद पुलिस के द्वारा गिरफ्तार किया गया था। पुलिस के द्वारा जारी किए गए प्रेस नोट में आरोपी का नाम डॉ. नरेंद्र विक्रमादित्य यादव है जो ब्रौनवाल्ड हॉस्पिटल का चेयरमैन है।

 

हैदराबाद पुलिस के द्वारा डॉ नरेंद्र विक्रमादित्य यादव की गिरफ्तारी का जारी किया गया प्रेस नोट

हमें एक ट्विटर यूजर Medlife Crisis(Rohin) के द्वारा मार्च में किया गया ट्वीट थ्रेड्स मिला जिसमें तथाकथित जॉन कैम के बारे में कुछ खुलासे किए गए। खुलासे में जॉन के द्वारा किए गए भूतपूर्व ट्वीट्स के आधार पर यह पाया गया कि वह अक्सर महिलाविरोधी, फासीवादी ट्वीट करते रहते हैं। जॉन कैम की निजी वेबसाइट पर भी कई गलतियां पायीं गईं। इसके अलावा लंदन के सेंट जॉर्ज अस्पताल में बिताई गई अवधि का भी उल्लेख किया गया, जहां वास्तविक प्रोफेसर जॉन कैम कार्डियोलॉजी का अभ्यास करते हैं। वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और नीतीश कुमार के साथ उनकी फोटोशॉप्ड तस्वीरें भी देखने को मिलीं। 

 यूजर ने यह भी बताया कि जॉन के प्रोफ़ाइल बैनर पर इमारत स्पष्ट रूप से राजस्थान में 2027 में प्रस्तावित एन जॉन कैम इंस्टीट्यूट की है। 

सही नाम का पता लगाने के लिए जब यूजर ने कार्डियोलॉजी पत्रिकाओं को देखना शुरू किया तो उन्हें नरेंद्र जॉन कैम की एक केस रिपोर्ट मिली। उस नाम को खोजने पर यूके स्थित कई बंद हो चुकी कंपनियों में नरेंद्र जॉन कैम को ‘कार्डियोलॉजिस्ट’ और कम्पनी निदेशक के रूप में सूचीबद्ध किया गया था।

इसके बाद यूजर ने प्रोफेसर जॉन कैम (ओरिजिनल) और यूजीन ब्रौनवाल्ड (Eugene Braunwald ) की तस्वीर शेयर करते हुए बताया कि प्रोफेसर जॉन कैम और यूजीन ब्रौनवाल्ड कार्डियोलॉजी में प्रतिष्ठित नाम हैं। एन जॉन कैम (फर्जी) ने कार्डियोलॉजी में एक प्रसिद्ध नाम की झलक पाने के लिए अपना नाम बदल लिया और ठीक उसी कारण से वही कंपनी का नाम(ब्रौनवाल्ड) भी चुना। 

इसके बाद हमें एमबीटी के प्रवक्ता अमजद उल्लाह खान का ट्वीट मिला जो डॉ नरेंद्र विक्रमादित्य यादव पर अपहरण और हॉस्पिटल के कर्मचारियों के साथ धोखाधड़ी करने के आरोपों का जवाब देते हुए प्रेस नोट जारी करते हैं। ध्यान देने वाली बात है कि ट्वीट में उपलब्ध प्रेस नोट में ब्रौनवाल्ड हॉस्पिटल के चेयरमैन के तौर पर डॉ. नरेंद्र विक्रमादित्य यादव को नामित किया गया है।

अमजद खान स्वयं एक फेसबुक पोस्ट में उनके साथ अपनी मुलाकात के बारे में बताते हैं।

मई 2019 को प्रकाशित द न्यूज मिनटइंडियन एक्सप्रेस और डक्कन क्रॉनिकल की रिपोर्ट्स में भी आरोपी का नाम डॉ नरेंद्र विक्रमादित्य यादव ही वर्णित किया गया है।

 इसके बाद हमें एक और ट्वीट मिला, जिसमें एक यूजर ने रिप्लाई में कुछ सबूत पेश करते हुए बताया कि डॉ नरेंद्र विक्रमादित्य यादव ने कितनी चालाकी से अपना नाम बदलकर डॉ एन जॉन कैम कर लिया। उनका दावा है कि उन्होंने प्रसिद्ध सीवी डॉक्टर, ए जॉन कैम के तहत प्रशिक्षण लिया है…”

ट्वीट में वेब स्क्रैपिंग Listly के दो स्क्रीनशॉट लगे हैं, जिनमें ओरिजिनल नाम (डॉ नरेन्द्र विक्रमादित्य यादव – Dr. Narendra Vikramaditya Yadav) की उपलब्धियों के बारे में बताया गया है। हैरान करने वाली बात है कि डॉ नरेंद्र विक्रमादित्य यादव के परिचय में लिखीं शुरुआत की 5 लाइनें तथाकथित नाम वाले डॉ ए जॉन कैम की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद परिचय की हूबहू नकल है, सिवाय नाम के। 

 यही परिचय डॉ नरेंद्र विक्रमादित्य यादव नाम की वेबसाइट पर भी देखा जा सकता है। 

वहीं ट्वीट में लगे चौथे स्क्रीनशॉट में देखा जा सकता है कि जॉन अपने एक ट्वीट को रिट्वीट कर रहे हैं जिसमें ‘JOHN CAMM INC’ नाम का एक पोस्टर लगा है और बता रहे हैं कि पहला स्टेप हमेशा कठिन होता है और हमने वह स्टेप ले लिया है। ऐसा प्रतीत होता है कि यहां पर विक्रमादित्य यादव ने नाम बदलने का स्टेप उठाया गया है।

पड़ताल के दौरान हम एक यूके वेबसाइट पर जा पहुंचे। जहां डॉ नरेंद्र विक्रमादित्य यादव से डॉ एन जॉन कैम बनने तक की असली कहानी का पता चला। इस वेबसाइट पर मौजूद कम्पनी के डाक्यूमेंट्स डॉ नरेंद्र की कहानी का सच बयां करते हैं। डाक्यूमेंट्स में देखा जा सकता है कि 1 जून 2019 को डॉ नरेंद्र विक्रमादित्य यादव ने अपना नाम डॉ नरेंद्र जॉन कैम (डॉ एन जॉन कैम – बदला हुआ नाम) कर लिया। वहीं कम्पनी ब्रौनवाल्ड हेल्थकेयर लिमिटेड का नाम बदलकर जॉन कैम हेल्थकेयर लिमिटेड कर दिया गया। 

निष्कर्ष

indiacheck ने अपनी पड़ताल में डॉ एन जॉन कैम का ये ट्विटर हैंडल सही नहीं प्रतीत हुआ. ऐसा लगता है कि यह ट्विटर हैंडल वास्तविक प्रतिष्ठित इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ एन जॉन कैम का नहीं है बल्कि उनके नाम पर रखा गया एक नकली हैंडल है जो अक्सर महिलाविरोधी, फासीवादी और मुस्लिम विरोधी ट्वीट करता रहता है। जिस यूजर के ट्वीट को सच मानकर भारतीय मीडिया ने योगी मॉडल की तारीफ करना बताया है दरअसल वह भारत के ही डॉ नरेंद्र विक्रमादित्य यादव का हैंडल है जिन्हें साल 2019 में धोखाधड़ी और अपहरण के केस में गिरफ्तार किया गया था।

दावा – प्रतिष्ठित डॉक्टर प्रोफेसर एन जॉन कैम ने फ्रांस में दंगे रुकवाने के लिए सीएम योगी मॉडल की सिफारिश की है

दावा किसने किया – भारतीय मीडिया संस्थान

सच-दावा गुमराह करने वाला है

FACT CHECK: अमेरिका के दौरे से जोड़कर न्यूयॉर्क टाइम्स में पीएम मोदी की तारीफ करने वाला लेख फर्जी है

पीएम मोदी अमेरिका के 3 दिवसीय(20-24 जून) दौरे पर थे। उनका यह दौरा बेहद खास माना जा रहा है। कई सोशल मीडिया यूजर्स द्वारा एक दावा किया जा रहा है जिसमें कथित तौर पर अमेरिकी अख़बार The New York Times का एक पृष्ठ सोशल मीडिया पर वायरल है। वायरल पृष्ठ में प्रधानमंत्री मोदी की बड़ी सी तस्वीर के साथ अख़बार की कथित आकर्षक हेडलाइन देखी जा सकती है। इसकी हेडलाइन है – “पृथ्वी की आख़िरी, सबसे बड़ी उम्मीद (LAST, BEST HOPE OF EARTH)”  वहीं इसके नीचे सब-हेडिंग में लिखा गया है – “दुनिया के सबसे प्रिय और शक्तिशाली नेता हमें आशीर्वाद देने आये हैं” यह दावा हाल ही में मोदी की अमेरिकी यात्रा से जोड़कर किया जा रहा है.

 कई सोशल मीडिया यूजर्स ने अखबार की कथित तस्वीर शेयर करते हुए कैप्शन दिया है, “आज के न्यूयॉर्क टाइम्स का मुख्य पृष्ठ |इसके बाद मोदी विरोधियों ख़ासकर कांग्रेसियों को कुछ कहने को बचा है क्या” (आर्काइव लिंक

पीएम मोदी पर न्यूयॉर्क टाइम्स के लेख का सच ?

दावे की पड़ताल करने से पहले आपको बता दें कि यह तस्वीर 2021 में भी इसी दावे के साथ खूब वायरल हुई थी। अख़बार के इस पृष्ठ को यदि करीब से देखा जाए तो इस पर 26 सितंबर 2021 की तारीख नजर आती है। वायरल तस्वीर को करीब से देखने पर हमें कई अशुद्धियाँ भी देखने को मिली. जैसे सितम्बर महीने को अंग्रेजी में ‘SEPTEMBER’ के बजाय ‘SETPEMBER’ के रूप में गलत तरीके से लिखा गया है. इसके अलावा, हेडलाइन ‘LAST, BEST HOPE OF EARTH’ और पीएम मोदी की तस्वीर के नीचे कैप्शन में लिखा है, “महामहिम, मोदीजी हमारे देश को आशीर्वाद देने के लिए एक कोरे ए4 कागज पर हस्ताक्षर कर रहे हैं… हर हर मोदी ।” कैप्शन में लिखे टेक्स्ट की भाषा किसी मोदी समर्थक जैसी लग रही है.

वायरल तस्वीर

 इन अशुद्धियों के अलावा, हमने पाया कि 26 सितंबर, 2021 का न्यूयॉर्क टाइम्स का ओरिजिनल फ्रंट पेज, वायरल तस्वीर की तुलना में पूरी तरह से अलग था. उस दिन के पहले पृष्ठ पर एक पुल की तस्वीर लगी थी.

26 सितंबर, 2021 का न्यूयॉर्क टाइम्स का ओरिजिनल फ्रंट पेज

वहीँ तस्वीर में लिखा गया फ़ॉन्ट भी अलग है और न्यूयॉर्क टाइम्स के हाल के संस्करणों से मैच नहीं खाता। अखबार के ओरिजिनल रविवार संस्करण में उपयोग की गई तस्वीर और वायरल तस्वीर के बीच असमानताओं को तुलनात्मक रूप से नीचे देखा जा सकता है.

‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने 29 सितंबर 2021 को एक ट्वीट करते हुए यह भी स्पष्ट किया है कि पोस्ट में साझा की गई तस्वीर पूरी तरह से मनगढ़ंत है.

पीएम मोदी 20 जून को अमेरिका पहुंचे इसलिए हमने २० जून, 21 जून, 22 जून और 23 जून का अख़बार चेक किया लेकिन हमें ऐसा कोई भी पेज देखने को नहीं मिला.

प्रधानमंत्री मोदी की वायरल तस्वीर कब और कहाँ की है ?

प्रधानमंत्री मोदी की वायरल तस्वीर कब की है और कहाँ की है, यह जानने के लिए हमने इसे yandex पर सर्च किया तो पता चला कि यह तस्वीर 12 मार्च, 2021 की है जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी अहमदाबाद, गुजरात में साबरमती आश्रम गए थे तब उन्होंने विजिटर बुक पर हस्ताक्षर किये थे. यह तस्वीर उसी दौरान ली गयी थी.

निष्कर्ष 

indiacheck ने अपनी पड़ताल में पाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वायरल यह तस्वीर व्यंग्यात्मक रूप से एडिट की गई है. यह तस्वीर 2021 के बाद से सोशल मीडिया पर वायरल है. वहीँ न्यू यॉर्क टाइम्स के ओरिजिनल फ्रंट पेज पर एक पूल की तस्वीर लगी है.

दावा: The New York Times अखबार ने पीएम मोदी को ‘पृथ्वी की आखिरी, सबसे अच्छी उम्मीद’ बताया है

दावा किसने किया : सोशल मीडिया यूजेर्स ने

सच : दाव झूठा है